क्या अमेरिका के सामने फिर झुके Modi? China-Russia से तोड़ेंगे सम्बन्ध ?
भारत की विदेश नीति हमेशा से ही "राष्ट्रहित सर्वोपरि" के सिद्धांत पर चलती आई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा ने एक बार फिर से एक बहस को जन्म दे दिया है। सोशल मीडिया और कुछ मीडिया हलकों में यह चर्चा गर्म है कि क्या भारत अमेरिका के दबाव में आकर अपने पारंपरिक साझेदारों, खासकर रूस और चीन से अपने संबंध तोड़ने जा रहा है? क्या भारत फिर से "झुक गया"?यह सवाल महत्वपूर्ण है और इसका जवाब एक वाक्य में "हां" या "नहीं" नहीं दिया जा सकता। यह समझने के लिए हमें भारत की विदेश नीति के इतिहास, वर्तमान वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य और राष्ट्रीय हितों के गहन विश्लेषण की जरूरत है।
"झुकने" की अवधारणा पर एक नजर
सबसे पहले इस शब्द "झुकना" को समझना जरूरी है। किसी भी देश के बीच समझौते, सौदे और साझेदारी होती हैं। इनमें दोनों पक्ष अपने-अपने हित साधते हैं। किसी एक पक्ष का फायदा उठाना "झुकना" नहीं, बल्कि कूटनीति कहलाता है। भारत आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और एक ऐसी शक्ति बनकर उभरा है जिसकी अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अहम राय है। ऐसे में किसी के आगे "झुकने" की बात करना भारत की बढ़ती ताकत को नजरअंदाज करना है।
भारत-रूस संबंध: एक tested Partnership
भारत और रूस के संबंध दशकों पुराने हैं। यह संबंध केवल सरकारों तक सीमित नहीं, बल्कि जन-से-जन के हैं।
- रक्षा क्षेत्र में निर्भरता: भारत का रक्षा ढांचा काफी हद तक रूसी हथियारों पर निर्भर रहा है। भारतीय सेना की रीढ़, चाहे वह T-90 टैंक हो, Sukhoi लड़ाकू विमान हों या AK-47 राइफलें, सभी इस साझेदारी की उपज हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा: रूस भारत के लिए ऊर्जा का एक अहम स्रोत बनकर उभरा है। यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने मात्रा में (at great volume) रूसी तेल का आयात किया, जिसने वैश्विक बाजार में तेल की बढ़ती कीमतों से भारतीय अर्थव्यवस्था को एक बड़े झटके से बचाया।
चीन के साथ जटिल समीकरण
चीन के साथ भारत के संबंध और भी जटिल हैं।- सीमा विवाद: गलवान घाटी जैसी घटनाओं ने दोनों देशों के बीच की खाई को और गहरा कर दिया है। भारत चीन के साथ किसी भी तरह के समझौते को सीमा विवाद के समाधान से जोड़कर देखता है।
- आर्थिक निर्भरता और प्रतिस्पर्धा: एक तरफ चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बहुत बड़ा है, तो दूसरी तरफ चीनी कंपनियों और उत्पादों पर भारत की निर्भरता भी कम नहीं है।
- अमेरिकी प्रतिस्पर्धा: अमेरिका चीन को अपना सबसे बड़ा strategic competitor (रणनीतिक प्रतिस्पर्धी) मानता है। ऐसे में अमेरिका चाहता है कि भारत जैसा बड़ा लोकतंत्र और आर्थिक शक्ति उसके साथ खड़ा हो।
अमेरिका के साथ बढ़ती नजदीकी: Partnership of Equals
PM मोदी की अमेरिका यात्रा को "झुकना" कहना, भारत-अमेरिका संबंधों की complexity को नहीं समझना है। यह संबंध अब "देना-लेना" (Transactionalism) से आगे बढ़कर एक "रणनीतिक साझेदारी" (Strategic Partnership) बन चुका है।- रक्षा सौदे: भारत अमेरिका से state-of-the-art रक्षा तकनीकें हासिल कर रहा है, जैसे कि GE के साथ एयरक्राफ्ट इंजनों का निर्माण। यह सौदा "ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी" (Technology Transfer) पर आधारित है, जो भारत के लिए एक बहुत बड़ी जीत है। इससे भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता को बल मिलेगा।
- चीन का मुकाबला: भारत और अमेरिका दोनों ही Indo-Pacific region को "खुला, स्वतंत्र और समृद्ध" बनाए रखना चाहते हैं, जहां किसी एक देश का दबदबा न हो। यह चीन की expansionist नीतियों के खिलाफ एक रणनीतिक जरूरत है।
- आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain): COVID-19 के बाद पूरी दुनिया चीन पर निर्भरता कम करना चाहती है। भारत इस मौके का फायदा उठाकर खुद को एक वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र (Alternative Manufacturing Hub) के रूप में स्थापित करना चाहता है और अमेरिका इसमें उसका साथ दे रहा है।
निष्कर्ष: संतुलन की कूटनीति (Balancing Act)
सारांश यह है कि भारत न तो झुका है और न ही वह रूस या चीन से अपने संबंध तोड़ने जा रहा है। भारत आज "मल्टी-एलाइनमेंट" (Multi-Alignment) की नीति पर चल रहा है। यानी, दुनिया के सभी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों (National Interests) को सर्वोच्च प्राथमिकता देना।भारत रूस के साथ रक्षा और ऊर्जा की साझेदारी जारी रखेगा, अमेरिका के साथ तकनीक और व्यापार को बढ़ावा देगा, और चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने और व्यापार घाटा कम करने की कोशिश करता रहेगा। यह कोई नई नीति नहीं है; यह वही "स्वतंत्र विदेश नीति" है जिसे भारत ने Cold War के दौर में भी निभाया था, बस अब इसके स्वरूप और माध्यम बदल गए हैं।
इसलिए, "मोदी के झुकने" जैसे सनसनीखेज सवालों से परे जाकर स्थिति को देखने की जरूरत है। भारत आज पहले से कहीं अधिक मजबूत और आत्मविश्वासी है, और वह दुनिया के सामने अपने फैसले अपने हितों के आधार पर खुद ले रहा है, किसी के दबाव में नहीं।
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