नेपाल की राजनीति: ओली, संविधान संशोधन और युवाओं का असंतोष
नेपाल इन दिनों राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए ऐसा कदम उठाया जिसने पूरे देश की राजनीति को हिला दिया। पार्टी के संविधान में स्पष्ट प्रावधान था कि 70 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी नेता पार्टी पद पर नहीं रह सकता, लेकिन ओली ने इस नियम को बदल डाला। इससे न केवल विपक्षी दलों में रोष फैला, बल्कि युवाओं में भी गहरा असंतोष देखने को मिला।ओली द्वारा संविधान में बदलाव
नेपाल की राजनीति लंबे समय से सत्ता संघर्ष का केंद्र रही है। जब ओली ने पार्टी संविधान में संशोधन कर खुद को पद पर बनाए रखने का रास्ता निकाला, तो लोकतांत्रिक मूल्यों पर सवाल खड़े हो गए। इस निर्णय के कारण पार्टी की पारदर्शिता और आंतरिक लोकतंत्र कमजोर पड़ा। आलोचकों का कहना है कि इस कदम से ओली ने व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा को लोकतंत्र से ऊपर रखा।
शेर बहादुर देउबा की बढ़ती उम्र और नेतृत्व संकट
ओली के बाद जिनके प्रधानमंत्री बनने की संभावना थी, शेर बहादुर देउबा, वे भी 80 वर्ष की उम्र पार कर चुके हैं। इससे नेपाल में नेतृत्व संकट और गहरा गया है। जब दोनों प्रमुख नेता वरिष्ठ हो चुके हैं, तब युवाओं में यह भावना तेज हुई कि सत्ता पर बूढ़े नेता काबिज हैं और युवाओं के लिए राजनीति में कोई जगह नहीं बची है। यही कारण है कि नेपाल के युवा, विशेषकर जेन ज़ी, अब परिवर्तन की मांग करने लगे हैं।
युवाओं की हताशा और जेन ज़ी का आंदोलन
नेपाल की सड़कों पर हाल ही में जेन ज़ी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए। युवाओं का मानना है कि देश में भ्रष्टाचार चरम पर है और नेताओं के लिए बने नियम केवल सत्ता बचाने का साधन हैं। हालांकि इन प्रदर्शनों में कुछ जगहों पर हिंसा देखने को मिली, लेकिन बाद में आंदोलनकारियों ने स्वयं हिंसा की निंदा की और आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया। यह कदम इस बात का संकेत है कि नेपाल का नया युवा वर्ग लोकतंत्र और शांतिपूर्ण आंदोलन में भरोसा रखता है।
भ्रष्टाचार और जवाबदेही का संकट
नेपाल में बढ़ते भ्रष्टाचार ने जनता की नाराज़गी को और गहरा दिया है। ओली सरकार के दौरान ऐसे नियम बनाए गए जिससे किसी भी मंत्री या प्रधानमंत्री के खिलाफ जाँच करना बेहद मुश्किल हो गया। यही वजह है कि भ्रष्टाचार के मामलों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पा रही है। जब भ्रष्टाचार के आरोपी नेता आराम से कुर्सी पर बैठे रहें और जनता को कोई राहत न मिले, तो असंतोष बढ़ना स्वाभाविक है।
हिंसा की राजनीति और लोकतांत्रिक मूल्यों पर खतरा
नेपाल में हाल ही में जो हिंसा देखने को मिली, उसने सभी को चौंका दिया। लोकतंत्र में हिंसा की कोई जगह नहीं है। समस्याओं का समाधान आंदोलन और संवाद से ही निकल सकता है। यह सुखद है कि युवाओं ने हिंसा से दूरी बनाने का निर्णय लिया और शांति की राह चुनी। यह कदम नेपाल के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए उम्मीद जगाता है।
भारत और बाहरी शक्तियों की भूमिका
नेपाल की राजनीति पर भारत की पैनी नजर रहती है। भारत में कई विश्लेषक मानते हैं कि बाहरी शक्तियाँ नेपाल को अस्थिर करने में लगी हैं। लेकिन केवल बाहरी कारकों को दोष देना सही नहीं होगा, क्योंकि नेपाल के भीतर भी कई गंभीर कारण मौजूद हैं—जैसे भ्रष्टाचार, उम्रदराज नेतृत्व, और सत्ता के लिए नियमों से छेड़छाड़। इन आंतरिक समस्याओं का समाधान किए बिना स्थिरता पाना कठिन होगा।
नेपाल की राजनीति में सुधार की ज़रूरत
- नेपाल का लोकतंत्र अभी भी अपेक्षाकृत नया है और उसे मजबूत बनाने के लिए गहरे सुधारों की आवश्यकता है।
- युवा नेतृत्व को बढ़ावा देना होगा ताकि राजनीति में नई सोच और ऊर्जा आ सके।
- पार्टी संविधान और नियमों को पारदर्शी बनाया जाए ताकि सत्ता का दुरुपयोग न हो।
- भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई की जाए और किसी भी स्तर पर जाँच में अड़चनें न डाली जाएं।
- लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाए रखने के लिए संवाद और शांतिपूर्ण विरोध को महत्व दिया जाए।
निष्कर्ष
नेपाल की वर्तमान स्थिति इस बात का प्रमाण है कि जब सत्ता की लालसा लोकतांत्रिक नियमों से ऊपर हो जाती है, तो पूरे देश में अस्थिरता फैल जाती है। ओली द्वारा संविधान संशोधन और देउबा की उम्रदराज़ी ने युवाओं के बीच निराशा को जन्म दिया। लेकिन सकारात्मक पक्ष यह है कि जेन ज़ी ने हिंसा का रास्ता छोड़कर लोकतांत्रिक आंदोलन की राह चुनी है। अब यह नेपाल के नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे युवाओं की आवाज़ सुनें और देश को स्थिरता, पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में आगे बढ़ाएं।
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