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परिचय: एक बदलता हुआ युद्धक्षेत्र
मिडिल इस्ट का राजनीतिक मानचित्र एक बार फिर से सुर्खियों में है। गाजा में चल रहे संघर्ष के बीच, एक नया और महत्वपूर्ण मोर्चा खुलता दिख रहा है। यमन से होकर लाल सागर के ऊपर से होते हुए, एक नई तरह की आशंका इजरायल और उसके पश्चिमी सहयोगियों को सताने लगी है। यमन के हौथी विद्रोही, जिन्हें अंसारुल्लाह के नाम से भी जाना जाता है, लगातार इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन हमले कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि इजरायल की लोहे की छत (आयरन डोम) और अमेरिका की अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम भी इन हमलों को पूरी तरह से नाकाम नहीं कर पा रही हैं। इन हमलों के पीछे की तकनीक और सामरिक सहायता सीधे तौर पर ईरान की ओर इशारा करती है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ईरान इस प्रॉक्सी जंग में अंसारुल्लाह के पीछे खुलकर खड़ा हो गया है।
अंसारुल्लाह मूल रूप से एक विद्रोही समूह था, लेकिन अब उसने अपने आप को एक ऐसी सैन्य शक्ति के रूप में स्थापित कर लिया है जिसके पास लंबी दूरी की मारक क्षमता वाले हथियार हैं। ये हथियार साधारण नहीं हैं। इनमें शामिल हैं:
1. बैलिस्टिक मिसाइलें: जैसे कि बदर-ए-पी और सईल मिसाइलें, जो ईरानी डिजाइन पर आधारित हैं। ये मिसाइलें इजरायल तक पहुँचने में सक्षम हैं।
2. क्रूज मिसाइलें: ये मिसाइलें समुद्र की सतह के नजदीक से उड़ान भरती हैं, जिससे रडार में पकड़ में आना मुश्किल हो जाता है।
3. शहीद ड्रोन (कामिकेज़ ड्रोन): ईरानी निर्मित ड्रोन, जैसे शहेद-136, जो कम लागत वाले, लेकिन घातक हथियार हैं। ये धीमी गति से उड़ते हैं, लेकिन रडार पर इन्हें पकड़ पाना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि ये छोटे और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले होते हैं
।इन हथियारों की खासियत यह है कि ये 'स्वार्म' (झुंड) की तरह हमला करते हैं। एक साथ दर्जनों ड्रोन और मिसाइलें भेजी जाती हैं, जिससे दुश्मन की एयर डिफेंस सिस्टम ओवरव्हेल्म (अभिभूत) हो जाती है। वे एक ही लक्ष्य पर इतने ज्यादा हथियार भेज देते हैं कि डिफेंस सिस्टम सभी को नष्ट नहीं कर पाता और कुछ न कुछ लक्ष्य तक पहुँच ही जाता है।
यह स्पष्ट है कि अंसारुल्लाह इतने उन्नत और घातक हथियार खुद से नहीं बना सकता। इसके पीछे ईरान का ही तकनीकी और सैन्य सहयोग है। ईरान ने पिछले एक दशक में अंसारुल्लाह को प्रशिक्षित किया है, उन्हें हथियार दिए हैं और उनकी मिसाइल तकनीक विकसित करने में मदद की है।
ईरान की इस रणनीति को "प्रॉक्सी वॉरफेयर" यानी 'प्रतिनिधि युद्ध' कहा जाता है। इसके तहत ईरान सीधे युद्ध में शामिल हुए बिना, अपने सहयोगी समूहों के जरिए अपने क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों (जैसे इजरायल और सऊदी अरब) पर दबाव बनाए रखता है। गाजा युद्ध ने ईरान के लिए एक सुनहरा मौका पैदा कर दिया है। अंसारुल्लाह के हमलों के जरिए ईरान इजरायल को संदेश दे रहा है कि अगर गाजा में संघर्ष और बढ़ा, तो उसे कई मोर्चों पर एक साथ लड़ना पड़ सकता है।
ईरान का यह कदम पूरी तरह से खुला हुआ है। वह अब छिपने की कोशिश नहीं कर रहा। अंसारुल्लाह के नेता भी खुले तौर पर ईरान के समर्थन का जिक्र करते हैं। यह ईरान की नई सैन्य और राजनयिक आत्मविश्वास को दर्शाता है।
इजरायल और अमेरिकी एयर डिफेंस: चुनौती क्यों?
इजरायल का 'आयरन डोम' एयर डिफेंस सिस्टम दुनिया के सबसे उन्नत सिस्टमों में से एक माना जाता है। फिर भी, यह अंसारुल्लाह के हमलों को पूरी तरह रोक पाने में क्यों असफल रहा है? इसके कई कारण हैं:- झुंड की रणनीति: जैसा कि पहले बताया गया, एक साथ बहुत सारे टारगेट को नष्ट करने के लिए बहुत सारी इंटरसेप्टर मिसाइलों की जरूरत होती है, जो कि बेहद खर्चीला है। एक ड्रोन की लागत कुछ हज़ार डॉलर होती है, जबकि एक इंटरसेप्टर मिसाइल लाखों डॉलर की हो सकती है।
- लो-ऑल्टीट्यूड फ्लाइट: क्रूज मिसाइलें और कुछ ड्रोन बहुत कम ऊंचाई पर उड़ान भरते हैं, जिससे जमीनी रडार के लिए उन्हें समय रहते भांप पाना मुश्किल हो जाता है।
- दूरी: यमन से इजरायल की दूरी काफी है, लेकिन मिसाइलों की रेंज इतनी है कि वे इस दूरी को आसानी से तय कर लेती हैं। इस लंबी दूरी के दौरान डिफेंस सिस्टम के लिए हर टारगेट पर नजर रखना चुनौतीपूर्ण है।
- हालांकि, अमेरिकी और इजरायली नौसेना के जहाजों ने कई मिसाइलों और ड्रोनों को मार गिराया है, लेकिन फिर भी कुछ हमले सफल हो ही जाते हैं, जो कि एक बड़ी सैन्य और मनोवैज्ञानिक जीत है।
मिडिल इस्ट में ईरान का यह सक्रिय और खुला रुख भविष्य के लिए एक गंभीर खतरे की घंटी है। इससे कई बातें स्पष्ट होती हैं:
1. ईरान की क्षमता: ईरान ने अपनी मिसाइल और ड्रोन तकनीक को काफी विकसित कर लिया है और वह इसे दूर-दराज के अपने सहयोगियों तक पहुँचाने में सक्षम है।
2. युद्ध का विस्तार: गाजा का संघर्ष अब सिर्फ गाजा तक सीमित नहीं रहा। इसके क्षेत्रीय युद्ध में बदलने की आशंका बढ़ गई है।
3. नए सैन्य समीकरण: इस घटनाक्रम ने पारंपरिक सैन्य शक्ति और एयर डिफेंस सिस्टमों के सामने नए सवाल खड़े कर दिए हैं। सस्ते और अधिक संख्या में किए जाने वाले हमले, महंगी डिफेंस प्रणालियों के लिए एक बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं।
अंततः, ईरान द्वारा अंसारुल्लाह का खुला समर्थन मिडिल इस्ट की जटिल भू-राजनीति में एक नया और खतरनाक अध्याय जोड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुद�य के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह इस संकट को गंभीरता से ले और संघर्ष को और अधिक विस्तार से रोकने के लिए राजनयिक प्रयासों को तेज करे। नहीं तो, आने वाला समय पूरे क्षेत्र के लिए और अधिक अशांति और अनिश्चितता लेकर आ सकता है।
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