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Friday, August 22, 2025

बीच दिल्ली: फिलीस्तीन के नाम पर भीड़, पुलिस की घबराहट और बड़े सवाल##फिलीस्तीन_विरोध_दिल्ली #दिल्ली_पुलिस #भारत_इजराइल_संबंध #फिलीस्तीन_समर्थन #जंतर_मंतर_प्रदर्शन #वैश्विक_मुद्दे_भारत #कानून_व्यवस्था #राष्ट्रीय_एकता #शांतिपूर्ण_विरोध #भारतीय_विदेश_नीति#


1. दिल्ली का इंडिया गेट, राजपथ, जंतर-मंतर... ये वो जगहें हैं जहाँ लोकतंत्र की आवाज़ गूँजती है, जहाँ हक की बात करने वालों का जमावड़ा होता है। लेकिन कल यहाँ जो कुछ हुआ, उसने सिर्फ दिल्ली पुलिस को ही नहीं, बल्कि पूरे देश को एक बार फिर एक गंभीर सवाल पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया। "आज दिल्ली प्रोटेस्ट फ्री पैलेस्टाइन" के नारों से गूँजती राजधानी ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वैश्विक मुद्दे अब हमारी सड़कों तक पहुँच चुके हैं।

2. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ एक शांतिपूर्ण विरोध था या फिर कहीं कोई और एजेंडा भी काम कर रहा था? दिल्ली पुलिस की 'घबराहट' सिर्फ भीड़ को देखकर नहीं थी, बल्कि उसके पीछे छिपे संभावित खतरे को भांपकर थी।
क्या हुआ था दिल्ली में?

3. हाल के दिनों में इजराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा है। इसका असर भारत में भी देखने को मिला। दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़ी भीड़ इकट्ठा हुई, जिसने फिलीस्तीन का समर्थन और इजराइल की निंदा करते हुए नारेबाजी की। प्रदर्शनकारियों ने "फ्री पैलेस्टाइन" के पोस्टर और बैनर लहराए और शांतिपूर्ण विरोध जताया।

4. हालाँकि, इस पूरे प्रदर्शन में कुछ ऐसी तस्वीरें भी सामने आईं जिन्होंने अधिकारियों की चिंता बढ़ा दी। भीड़ का आकार, कुछ उग्र नारे और सोशल मीडिया पर इस प्रदर्शन की जिस तरह से चर्चा हो रही थी, उसने पुलिस को सतर्क कर दिया। यही कारण था कि पुलिस ने वहाँ भारी बल तैनात कर दिया और स्थिति पर नजर बनाए रखी।
पुलिस की 'घबराहट' असल में क्या थी?

5. मीडिया में 'घबराई हुई दिल्ली पुलिस' जैसे हेडलाइन्स देखने को मिले। लेकिन किसी भी लोकतांत्रिक देश में, खासकर भारत जैसे विविधताओं वाले देश में, पुलिस का सतर्क रहना उसकी जिम्मेदारी है। यह 'घबराहट' नहीं, सजगता थी।
  • पुलिस की चिंता के मुख्य कारण थे:
  • कानून-व्यवस्था की स्थिति: किसी भी बड़े प्रदर्शन में हिंसा भड़कने का खतरा बना रहता है। पुलिस का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे और किसी तरह की अप्रिय घटना न हो।
  • विदेशी मुद्दे पर घरेलू प्रतिक्रिया: एक विदेशी संघर्ष पर देश के अंदर इतना बड़ा प्रदर्शन चिंता का विषय हो सकता है। पुलिस को यह आशंका थी कि कहीं यह विवाद साम्प्रदायिक रूप न ले ले।
5.सोशल मीडिया की भूमिका: सोशल मीडिया पर गलत सूचनाएँ तेजी से फैल सकती हैं और भीड़ को उकसा सकती हैं। पुलिस इसपर भी नजर रख रही थी।
विवाद किस बात पर है?

यह प्रदर्शन और इसके बाद की प्रतिक्रियाएं कई मायनों में विवादित रहीं।

6. भारत की विदेश नीति पर सवाल: भारत ने हमेशा से फिलीस्तीनियों के मानवाधिकारों का समर्थन किया है, साथ ही इजराइल की संप्रभुता और सुरक्षा के अधिकार को भी मान्यता दी है। यह एक संतुलित रुख है। इस प्रदर्शन में कुछ लोगों द्वारा भारत की विदेश नीति के खिलाफ नारे लगाए जाने की खबरें आईं, जो विवाद का कारण बनीं।
  • साम्प्रदायिकरण का खतरा: दुर्भाग्य से, किसी भी अंतरराष्ट्रीय मुद्दे को साम्प्रदायिक नजरिए से देखने की कोशिश की जाती है। यह प्रदर्शन भी इससे अछूता नहीं रहा। कुछ गुटों द्वारा इसे एक धर्म विशेष के खिलाफ भड़काऊ तरीके से पेश किया जा रहा है, जो राष्ट्रीय एकता के लिए ठीक नहीं है।
  • दोहरे मापदंड का आरोप: कुछ लोगों का मानना है कि दुनिया के कुछ संघर्षों को चुन-चुनकर अधिक महत्व दिया जाता है, जबकि दूसरे मामलों पर चुप्पी साध ली जाती है। यूक्रेन संकट या दुनिया के अन्य हिस्सों में चल रहे संघर्षों पर इतने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन क्यों नहीं होते? यह सवाल भी उठ रहे हैं।
क्या है भारत का रुख और हमारी प्राथमिकताएं?
  • भारत ने हमेशा से शांति और मानवता का पक्ष लिया है। हमारी विदेश नीति "वसुधैव कुटुम्बकम" की भावना पर आधारित है। फिलीस्तीन मुद्दे पर भारत का स्टैंड स्पष्ट है:
  • फिलीस्तीनियों के लिए एक संप्रभु, स्वतंत्र और жизнеव्यापी राष्ट्र का समर्थन।
  • इजराइल के साथ रणनीतिक और आर्थिक साझेदारी को मजबूत करना।
  • शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए दो-राष्ट्र समाधान की वकालत करना।
6. ऐसे में, घरेलू स्तर पर हमारी प्राथमिकता राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सद्भाव बनाए रखना होनी चाहिए। विदेशी संघर्षों को लेकर हमारी सहानुभूति हो सकती है, लेकिन उन्हें भारतीय समाज में विभाजन की रेखा खींचने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
निष्कर्ष: एकजुटता बनाम विभाजन
  • दिल्ली में हुआ प्रदर्शन लोकतंत्र का एक हिस्सा है। शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार हर नागरिक को है। लेकिन, यह याद रखना जरूरी है कि हम भारतीय हैं और हमारी पहचान सबसे ऊपर है।
  • वैश्विक मुद्दों पर बहस और चर्चा होनी चाहिए, लेकिन उसका आधार तथ्य और मानवता होना चाहिए, न कि धर्म या समुदाय। पुलिस की सतर्कता को 'घबराहट' कहकर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह समझना चाहिए कि वे देश की शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपना कर्तव्य निभा रहे थे।
अंत में, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम विदेशी संघर्षों में इतना न उलझें कि अपने घर के मोर्चे को भूल जाएं। भारत की ताकत उसकी एकजुटता में है। इसे बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।

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