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Sunday, July 27, 2025

डर के मारे हम जा रहे हैं" – गुरुग्राम से सैकड़ों बांग्ला भाषी माइग्रेंट्स ने बसों से शुरू किया पलायन##GurugramMigrants #BengaliMigrants #MigrantCrisis #GurgaonNews #IndiaNews #HindiNews #HumanRightsIndia#

 गुरुग्राम से आ रही ताज़ा खबरें देश को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर रही हैं। “डर के मारे हम जा रहे हैं” — यह बयान उन सैकड़ों बांग्ला भाषी माइग्रेंट्स की पीड़ा को उजागर करता है, जो बीते कुछ दिनों से गुरुग्राम से बसों में भर-भरकर अपने घरों की ओर रवाना हो रहे हैं। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि मेहनतकश लोग अपना सब कुछ छोड़कर भागने को मजबूर हो गए?

भय और अफवाह का माहौल

गुरुग्राम में काम कर रहे बांग्ला भाषी प्रवासी मज़दूरों के बीच एक डर का माहौल पैदा हो गया है। कुछ घटनाओं और झूठी अफवाहों ने हालात को इस कदर बिगाड़ दिया कि लोगों को लगा, अब यहां सुरक्षित नहीं रहा जा सकता। रातोंरात परिवारों ने बोरिया-बिस्तर समेटा और हरियाणा से निकलने का फैसला कर लिया।

"हम काम करते हैं, कोई अपराध नहीं": प्रवासियों की गुहार

इन माइग्रेंट्स का कहना है कि वे यहां वर्षों से मेहनत कर रहे थे — कोई कंस्ट्रक्शन साइट पर, कोई फैक्टरी में, तो कोई घरेलू सहायकों के रूप में। फिर भी, अचानक उन्हें शक की नज़र से देखा जाने लगा। कई का आरोप है कि उनके नाम पर झूठी शिकायतें की गईं, जिससे पुलिस की पूछताछ और समाज की दूरी बढ़ती गई।

सामाजिक सौहार्द पर संकट

गुरुग्राम जैसी जगह, जो देश की आर्थिक रीढ़ मानी जाती है, वहां अगर कामगार असुरक्षित महसूस करने लगें तो यह केवल मानवीय नहीं बल्कि आर्थिक संकट का भी संकेत है। इन बांग्ला भाषी माइग्रेंट्स के जाने से उद्योगों और सेवाओं पर सीधा असर पड़ेगा।

प्रशासन की चुप्पी और विपक्ष की चिंता

अभी तक प्रशासन की ओर से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया है। वहीं विपक्ष और मानवाधिकार संगठन सरकार से जवाब मांग रहे हैं — क्या इन नागरिकों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी नहीं बनती? क्या भय का यह माहौल योजनाबद्ध है या प्रशासनिक असफलता?

क्या यह सिर्फ शुरुआत है?

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ऐसी घटनाएं इसी तरह बढ़ती रहीं, तो और राज्यों में भी माइग्रेंट्स का पलायन शुरू हो सकता है। इससे ना सिर्फ सामाजिक ताना-बाना बिगड़ेगा, बल्कि देश की श्रमिक व्यवस्था भी लड़खड़ा जाएगी।


निष्कर्ष

“डर के मारे हम जा रहे हैं” — यह कोई फिल्मी डायलॉग नहीं, बल्कि हमारे समाज का कटु सत्य है। जब मेहनतकश नागरिक खुद को असुरक्षित महसूस करें, तो यह केवल कानून-व्यवस्था की विफलता नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक संवेदनहीनता का आईना भी है। गुरुग्राम से रवाना होते ये बसें हमें चेतावनी दे रही हैं — वक्त है, संभलने का।

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