इस्राइल के यमन हमले के बाद सना में ईद मिलाद उन नबी की धूम, हुतियों का क्या है संदेश?
विषय-सूची1. प्रस्तावना: संघर्ष और उत्सव का अद्भुत संगम
2. यमन पर इस्राइली हमला: पूरी घटना क्या है?
3. सना की सड़कों पर ईद मिलाद उन नबी की रौनक
4. हर फेरियों, हर बैनर का एक संदेश: हुतियों की 'जय बोल'
5. गाजा से सना तक: एकजुटता की अटूट डोर
6. आस्था बनाम राजनीति: एक सूक्ष्म विश्लेषण
7. निष्कर्ष: शांति और संघर्ष के बीच यमन का सफर
प्रस्तावना: संघर्ष और उत्सव का अद्भुत संगम
यमन की राजधानी सना की हवा में these दिनों एक अद्भुत मेल देखने को मिल रहा है। एक तरफ जहाँ युद्ध और संघर्ष की कठोर हकीकत है, वहीं दूसरी तरफ पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के जन्मदिन यानी ईद मिलाद उन नबी के पवित्र उत्सव की अलौकिक खुशी और आस्था की मधुर महक है। यह नज़ारा अपने आप में अनोखा है – जहाँ एक ओर आसमान में युद्धक विमानों का शोर है, वहीं दूसरी ओर जमीन पर लाखों की भीड़ 'दरूद-o-सलाम' का गुंजान कर रही है।हाल ही में, इस्राइल द्वारा यमन पर हमले की खबरों के बीच, सना शहर में मनाया गया यह उत्सव दुनिया के लिए एक स्पष्ट संदेश लेकर आया है। यह संदेश है अटूट आस्था, अदम्य साहस और फिलिस्तीन के साथ अटूट एकजुटता का। आइए, विस्तार से समझते हैं इस पूरे घटनाक्रम को।
यमन पर इस्राइली हमला: पूरी घटना क्या है?
गाजा में चल रहे इस्राइली हमले और नरसंहार के विरोध में यमन की अंसारुल्लाह (हूथी) movement ने एक बड़ा कदम उठाया। उन्होंने लाल सागर में इस्राइली जहाजों को जाने से रोकने की घोषणा की और वास्तव में कई इस्राइली जहाजों को अपना निशाना भी बनाया।इसी कड़ी में, हूथी movement ने हाल ही में इस्राइल पर कई ड्रोन हमले भी किए। इस्राइल ने इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए यमन पर जवाबी हमला कर दिया। इस्राइली विमानों ने यमन के कुछ हिस्सों पर हमला किया, जिसमें हूथियों के ठिकानों को निशाना बनाया गया। इस हमले ने पूरे क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा दिया है।
सना की सड़कों पर ईद मिलाद उन नबी की रौनक
इस्राइली हमले की आशंकाओं और वास्तविकताओं के बीच भी, सना के लोगों ने ईद मिलाद उन नबी के पावन पर्व को अत्यंत हर्षोल्लास और भक्ति के साथ मनाया। शहर की मुख्य सड़कें हरे-हरे रंग से सजी हुई थीं, जो इस्लाम और खुशी का प्रतीक है।बच्चे, बूढ़े, जवान – सभी उम्र के लोग नए कपड़े पहनकर जुलूस में शामिल हुए। लाखों की संख्या में लोगों ने सड़कों पर निकलकर नबी-ए-करीम के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा और प्यार का इजहार किया। झांकियां निकाली गईं, मिठाइयां बांटी गईं, और दीन-ए-इस्लाम के लिए जान देने का जज्बा दिखाया गया।
हर फेरियों, हर बैनर का एक संदेश: हुतियों की 'जय बोल'
इस जुलूस की सबसे खास बात थी उसमें छिपा राजनीतिक और सैन्य संदेश। यह केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं था, बल्कि हूथी movement और यमन के लोगों द्वारा दुनिया को दिया गया एक जोरदार जवाब था।जुलूस में देखे गए नारों, बैनरों और झांकियों में कुछ प्रमुख संदेश साफ झलक रहे थे:
2. इस्राइल और अमेरिका के खिलाफ नारे: जुलूस में शामिल लोग "मौत इस्राइल को" और "अमेरिका का सिर नीचा" जैसे नारे लगा रहे थे, जो उनके विरोध को दर्शाता है।
3. नबी के रास्ते पर चलने का संकल्प: सबसे बड़ा संदेश यह था कि यमन के लोग पैगंबर मुहम्मद (स.अ.व.) के बताए रास्ते पर चलकर ही जीत हासिल करेंगे, चाहे दुनिया की कोई भी ताकत उनके सामने क्यों न आ जाए।
गाजा से सना तक: एकजुटता की अटूट डोर
यमन में हो रहा यह उत्सव केवल एक स्थानीय घटना नहीं है। यह वैश्विक इस्लामिक एकजुटता का एक प्रतीक है। गाजा में फिलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचारों ने पूरी दुनिया के मुसलमानों के दिलों को दुखी किया है, और यमन इस दुख में सबसे आगे खड़ा दिख रहा है।हूथी movement ने अपने कार्यों और अब इस जुलूस के माध्यम से यह साबित कर दिया है कि वह केवल सैन्य कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि वह एक वैचारिक और धार्मिक लड़ाई भी लड़ रही है। उनका मानना है कि गाजा की लड़ाई केवल फिलिस्तीन की नहीं, बल्कि पूरे इस्लामिक विश्व की लड़ाई है।
आस्था बनाम राजनीति: एक सूक्ष्म विश्लेषण
एक नज़रिये से देखें तो, हूथी movement ने इस धार्मिक उत्सव का इस्तेमाल एक शक्तिशाली राजनीतिक हथियार के रूप में किया है। उन्होंने दुनिया को दिखाया है कि:- इस्राइली हमले उनके हौसले को तोड़ नहीं सकते।
- उनके पास जनता का भारी समर्थन है।
- उनकी लड़ाई धार्मिक आधार पर है, जिसके कारण उनके समर्थकों का मनोबल अत्यधिक ऊंचा है।
निष्कर्ष: शांति और संघर्ष के बीच यमन का सफर
सना में मनाया गया ईद मिलाद उन नबी का उत्सव एक तस्वीर है उस आशा और जुनून की, जो यमन के लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है। यह उत्सव इस बात का प्रमाण है कि युद्ध और हमले किसी की आस्था और संस्कृति को नहीं मार सकते।हूथियों का संदेश स्पष्ट और दृढ़ है: वे फिलिस्तीन के समर्थन से पीछे नहीं हटेंगे और अपने धार्मिक मूल्यों पर अडिग रहते हुए हर चुनौती का सामना करेंगे। दुनिया को अब यह समझने की जरूरत है कि यमन का संघर्ष केवल सत्ता का संघर्ष नहीं, बल्कि एक गहरी वैचारिक लड़ाई है, जिसकी जड़ें इतिहास और आस्था में हैं।
अंत में, यही कामना करते हैं कि पैगंबर-ए-इस्लाम के सन्देश of peace and harmony पूरे विश्व में फैले और यमन सहित पूरा मध्य पूर्व शांति और स्थिरता की राह पर चल पड़े। आमीन।
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