नितिन गडकरी के पास सवा सौ सांसद! बनेंगे बागियो के सरदार? मोदी को उपराष्ट्रपति चुनाव में झटका
राजनीति की दुनिया में हवा का रुख बदलने में देर नहीं लगती। कल तक जो बात अफवाह लगती थी, आज वही सुर्खियाँ बटोर रही है। हाल ही में एक खबर ने देश की राजनीतिक गलियारों में तहलका मचा दिया है। खबर यह है कि केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी के पास पार्टी के सवा सौ (125) सांसदों का समर्थन है और वह उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ बागी सांसदों के 'सरदार' बनने वाले हैं। साथ ही, यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस चुनाव में एक बड़ा झटका लगा है।लेकिन क्या यह सच है? या सिर्फ एक सियासी अफवाह है? आइए, इस पूरे मामले की तह तक जाते हैं और हर पहलू को विस्तार से समझते हैं।
उपराष्ट्रपति चुनाव: जहाँ से शुरू हुई सारी उठापटक
यह सारा विवाद हाल ही में हुए उपराष्ट्रपति चुनाव से जुड़ा है। NDA की ओर से श्री जगदीप धनखड़ उम्मीदवार थे, जिनका विपक्ष की उम्मीदवार श्रीमती मार्गरेट अल्वा से सामना था। परिणाम तो NDA के पक्ष में रहा और धनखड़ जी विजयी रहे। लेकिन, इस चुनाव में हुई 'गुप्त मतदान' प्रक्रिया ने ही सारे कयासों को जन्म दिया।गुप्त मतदान का मतलब है कि कोई नहीं जान सकता कि किस सांसद ने किसके लिए वोट डाला। यहीं वह जगह है जहाँ से 'बगावत' के सभी दावे फूटे।
क्या वाकई नितिन गडकरी के पास है 125 सांसदों का समर्थन?
यह दावा एक बहुत ही साहसिक और गंभीर अभिकथन है। हालाँकि, इसकी पुष्टि के लिए कोई ठोस सबूत या सार्वजनिक बयान नहीं है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह संख्या एक अतिशयोक्ति हो सकती है।ऐसा कहा जा रहा है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA के उम्मीदवार को कुछ सांसदों का वोट नहीं मिला। इसके बाद यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि क्या ये सांसद नितिन गडकरी के समर्थक हैं, जो एक अलग राय रखते हैं? गडकरी जी, अपने व्यावहारिक और स्पष्टवादी image के लिए जाने जाते हैं और पार्टी के भीतर उनकी एक अलग पहचान है। हो सकता है कि कुछ सांसद उनके नेतृत्व को पसंद करते हों, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में समर्थन का दावा फिलहाल सिर्फ कहने भर की बात लगती है।
बागियो के 'सरदार' बनेंगे गडकरी?
"बागियो के सरदार" जैसी उपाधि देना भारतीय मीडिया की एक विशेषता है। यह एक रोचक और चटखारेदार शीर्षक है जो पाठकों को आकर्षित करता है। परंतु वास्तविकता में, नितिन गडकरी केंद्र सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री हैं और BJP के एक महत्वपूर्ण चेहरे हैं। पार्टी के भीतर स्वस्थ विचार-विमर्श और अलग-अलग राय होना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि वह 'बगावत' का नेतृत्व कर रहे हैं।गडकरी जी ने खुद कई बार कहा है कि वह पार्टी लाइन से बंधे हुए हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरी तरह से काम कर रहे हैं। ऐसे में, उन्हें 'बागी सरदार' की उपाधि देना सटीक नहीं प्रतीत होता।
क्या मोदी जी को वाकई झटका लगा?
उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA की जीत हुई है, इसलिए सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी या पार्टी को कोई झटका नहीं लगा है। हाँ, यह जरूर है कि गुप्त मतदान में कुछ सांसदों के वोट NDA उम्मीदवार को नहीं मिले। इससे यह संकेत जरूर मिलता है कि पार्टी के भीतर कहीं न कहीं एक छोटा सा असंतोष मौजूद हो सकता है।लेकिन, किसी भी बड़े राजनीतिक दल में ऐसा होना असामान्य नहीं है। इसे 'झटका' कहने के बजाय 'एक चुनौती' के रूप में देखा जा सकता है, जिस पर पार्टी शायद आंतरिक रूप से काम करे।
असली सवाल: यह खबर आई कहाँ से?
इस तरह की खबरें अक्सर कई स्रोतों से उपजती हैं:1. अनाम स्रोत: कई बार मीडिया को पार्टी के भीतर के 'अनाम स्रोत' ऐसी जानकारी देते हैं।
2. विपक्ष की रणनीति: राजनीतिक विरोधी दल ऐसी अफवाहों को हवा देकर सत्तारूढ़ दल में फूट का आभास कराना चाहते हैं।
3. मीडिया स्पेकुलेशन: कई बार मीडिया विश्लेषण और कयासों के आधार पर ऐसी सुर्खियाँ बनाता है ताकि पाठकों का ध्यान खींचा जा सके।
निष्कर्ष: सच्चाई क्या है?
इस पूरे प्रकरण की सच्चाई शायद इन दोनों के बीच में कहीं है।- यह सच है कि उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA के सभी सांसदों ने एकजुटता नहीं दिखाई।
- यह भी सच है कि नितिन गडकरी पार्टी के भीतर एक लोकप्रिय और सम्मानित नेता हैं।
- लेकिन, यह दावा कि उनके पास 125 सांसदों का समर्थन है और वह एक बगावत का नेतृत्व कर रहे हैं, फिलहाल पुष्टि के अभाव में एक अतिशयोक्तिपूर्ण अटकल ही लगती है।
अंत में, इतना जरूर कहा जा सकता है कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता। लेकिन, बिना ठोस सबूत के इस खबर को पूरी तरह से सच मान लेना उचित नहीं होगा। यह घटना पार्टी के भीतर हो रही गतिविधियों पर नजर रखने की जरूरत जरूर बताती है। अगले कुछ दिनों में और भी तथ्य सामने आ सकते हैं। तब तक के लिए, यह कहानी एक रोचक राजनीतिक उपन्यास का अध्याय ही लगती है, जिसका अंत अभी लिखा जाना बाकी है।
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