राहुल-तेजस्वी की रैली में स्टालिन: बिहार से उत्तर-दक्षिण की दीवार तोड़ने का संदेश
बिहार की धरती सिर्फ़ इतिहास बनाने का नहीं, बल्कि इतिहास गढ़ने का नाम है। यह वह भूमि है जहाँ सम्राट अशोक ने युद्ध का त्याग किया, जहाँ गुरु गोबिंद सिंह ने जन्म लिया, और जहाँ जयप्रकाश नारायण ने 'संपूर्ण क्रांति' का बिगुल फूंका। आज, एक बार फिर, मुज़फ़्फ़रपुर की जनसभा ने एक नए इतिहास की नींव रखी है। यह नींव है भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक एकजुटता की।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की महा रैली में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन का शामिल होना और अपनी मातृभाषा तमिल में भाषण देना, केवल एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था। यह एक शक्तिशाली प्रतीक था। एक ऐसा प्रतीक जो उत्तर बनाम दक्षिण की कृत्रिम दीवारों को ढहाने का काम कर रहा है।
एक मंच, कई सुर, एक संगीत: INDIA गठबंधन की बढ़ती ताकत
इस रैली को देखना एक सुन्दर सांस्कृतिक गठजोड़ को देखने जैसा था। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के बाद तमिलनाडु के स्टालिन और जल्द ही कर्नाटक के सिद्दारमैया के बिहार की इस जनसभा में शामिल होने का सीधा सा अर्थ है – INDIA गठबंधन सिर्फ़ एक नाम नहीं, एक जीती-जागती सच्चाई है।
यह गठजोड़ देश के कोने-कोने से नेताओं को एक सूत्र में बांध रहा है। यह साबित कर रहा है कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है और इस विविधता को एक साथ लाने का काम यह गठबंधन कर रहा है। यह एक ऐसा परिवार है जहाँ द्रविड़ हैं, तेलुगु हैं, कन्नड़ हैं और बिहारी हैं – सब मिलकर एक नए भारत का निर्माण कर रहे हैं।
बिहार की धरती सिर्फ़ इतिहास बनाने का नहीं, बल्कि इतिहास गढ़ने का नाम है। यह वह भूमि है जहाँ सम्राट अशोक ने युद्ध का त्याग किया, जहाँ गुरु गोबिंद सिंह ने जन्म लिया, और जहाँ जयप्रकाश नारायण ने 'संपूर्ण क्रांति' का बिगुल फूंका। आज, एक बार फिर, मुज़फ़्फ़रपुर की जनसभा ने एक नए इतिहास की नींव रखी है। यह नींव है भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक एकजुटता की।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की महा रैली में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन का शामिल होना और अपनी मातृभाषा तमिल में भाषण देना, केवल एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं था। यह एक शक्तिशाली प्रतीक था। एक ऐसा प्रतीक जो उत्तर बनाम दक्षिण की कृत्रिम दीवारों को ढहाने का काम कर रहा है।
एक मंच, कई सुर, एक संगीत: INDIA गठबंधन की बढ़ती ताकत
इस रैली को देखना एक सुन्दर सांस्कृतिक गठजोड़ को देखने जैसा था। तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के बाद तमिलनाडु के स्टालिन और जल्द ही कर्नाटक के सिद्दारमैया के बिहार की इस जनसभा में शामिल होने का सीधा सा अर्थ है – INDIA गठबंधन सिर्फ़ एक नाम नहीं, एक जीती-जागती सच्चाई है।
यह गठजोड़ देश के कोने-कोने से नेताओं को एक सूत्र में बांध रहा है। यह साबित कर रहा है कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है और इस विविधता को एक साथ लाने का काम यह गठबंधन कर रहा है। यह एक ऐसा परिवार है जहाँ द्रविड़ हैं, तेलुगु हैं, कन्नड़ हैं और बिहारी हैं – सब मिलकर एक नए भारत का निर्माण कर रहे हैं।
आमतौर पर हमने देखा है कि जब उत्तर भारत का कोई नेता दक्षिण में जाता है तो उसके भाषण का स्थानीय भाषाओं में अनुवाद किया जाता है। लेकिन आज, इस परंपरा को तोड़ते हुए, बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के मंच पर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने अपना सम्पूर्ण भाषण तमिल में दिया, जिसका अनुवाद हिंदी में किया गया।
यह एक छोटी सी घटना नहीं, बल्कि एक बहुत बड़ा संदेश है। यह संदेश है सम्मान और स्वाभिमान का। स्टालिन ने जानबूझकर ऐसा किया। उन्होंने बिहार की जनता को यह बताना चाहा कि हम आपकी भाषा और संस्कृति का सम्मान करते हैं, और हमें विश्वास है कि आप हमारी भाषा और हमारे अस्तित्व का सम्मान करेंगे। हिंदी ने यहाँ एक पुल का काम किया, जो दोनों संस्कृतियों को जोड़ रहा था। यह जबरदस्ती की जगह सौहार्द की भाषा है
स्टालिन का बिहार आना हमें हमारे उस गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता है जिसे हम भूलते जा रहे हैं। बिहार हमेशा से समावेश की भूमि रही है। यहाँ सिर्फ़ बिहारी ही नहीं, बल्कि देश के कोने-कोने से आए लोगों ने अपनी किस्मत बनाई और इस राज्य के विकास में योगदान दिया।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं वे लाखों बिहारी मज़दूर जिन्होंने अपने पसीने से तमिलनाडु सहित देश के विभिन्न हिस्सों की अर्थव्यवस्था को संवारा है। वे चाय के बागानों में हों, कारखानों में हों या निर्माण स्थलों पर – बिहार के श्रमिकों ने देश के विकास में अहम भूमिका निभाई है। स्टालिन का यहाँ आना एक तरह से उसी श्रम और संबंध की सराहना है। यह एक 'धन्यवाद' है उन करोड़ों हाथों के प्रति जिन्होंने दूसरे राज्यों की समृद्धि में अपना योगदान दिया।
कुछ ताकतें हमेशा से उत्तर और दक्षिण भारत के बीच एक दीवार खड़ी करने की कोशिश करती रही हैं। इसे भाषाई, सांस्कृतिक और even राजनीतिक विभाजन के रूप में पेश किया जाता रहा है। मुज़फ़्फ़रपुर की यह रैली इस फ़र्ज़ी बहस को करारा जवाब है।
यह रैली कहती है कि भारत एक है। यहाँ की समस्याएं एक हैं – बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार। और इन समस्याओं का समाधान भी एकजुट होकर ही निकाला जा सकता है। एक तमिल नेता का बिहार में भाषण देना और बिहार की जनता का उसे सम्मान देना, यह साबित करता है कि जनता इन विभाजनकारी राजनीतियों से ऊपर उठ चुकी है। वह उस राजनीति की ताकफ़ में है जो उसे जोड़ती है, तोड़ती नहीं।
स्टालिन के भाषण का सबसे मार्मिक पल वह था जब उन्होंने बिहार और तमिलनाडु के बीच के historical रिश्ते को याद किया। उन्होंने कहा कि जिस तरह तमिलनाडु के लोगों ने बिहार के लोगों का स्वागत किया, उसी तरह आज बिहार की जनता ने मुझे अपनाया है।
यह भाषा से ऊपर की बात है। यह दिल से दिल का रिश्ता है। जब कोई नेता दूसरे राज्य की जनता से सीधे उनकी भावनाओं को समझकर, उनके सम्मान के साथ बात करता है, तो जनता उसे तुरंत गले लगा लेती है। आज मुज़फ़्फ़रपुर की जनता ने स्टालिन को सिर्फ़ एक नेता के रूप में नहीं, बल्कि एक मेहमान के रूप में स्वीकार किया।
रेवंत रेड्डी, एम.के. स्टालिन और सिद्दारमैया का बिहार आना कोई आम राजनीतिक दौरा नहीं है। यह एक नए भारत के निर्माण की घोषणा है। एक ऐसे भारत की जहाँ regional pride राष्ट्रीय एकता के आगे छोटी हो जाए। जहाँ तमिल, तेलुगु, हिंदी, मैथिली, भोजपुरी सभी भाषाएँ मिलकर देश का गौरव गाएँ।
बिहार की इस धरती ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि यह विविधताओं को अपने में समेटने की क्षमता रखती है। INDIA गठजोड़ की यह एकजुटता देश को एक नई दिशा देगी, जहाँ 'उत्तर' और 'दक्षिण' जैसे शब्द सिर्फ़ भौगोलिक पहचान बनकर रह जाएंगे, राजनीतिक विभाजन की रेखा नहीं। यही है भारत की सच्ची ताकत और यही है हमारे संविधान की मूल भावना।
जय हिंद, जय भारत।
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